Saturday, May 19, 2012

लक्ष्मी : 1961


Friends are born, not made: .Henry B. Adams

1961 फरवरी में मेरे स्कूल फाईनल की परीक्षा खत्म होते ही मेरे पिताजी का तबादला झुमरी तिलैया जैसे छोटे पर यादगार कस्बे से बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी रांची हो गया. मेरे लिए ये बड़ी अच्छी बात थी. यहाँ कॉलेज थे. रिजल्ट निकलते ही मैं और मेरे बड़े भाई कॉलेजों का चक्कर लगाने लगे. हमलोग रांची से पास नहीं हुए थे और नंबर भी कम थे अतः रांची कॉलेज में ही एडमिशन की संभावना बनी. मैं अभी भी हाफ पैंट पहनता था. जब हमलोग कॉलेज की सीढियां उतर रहे थे तभी एक सीधा-साधा सा खूबसूरत लड़का सीढियों के नीचे मुस्कुराता सा दिखा. हमलोगों की एक ही समस्या थी अतः जान-पहचान होते देर न लगी. लक्ष्मी नारायण मिश्र नाम था और वह डाल्टेनगंज (पलामू जिला) से आया था. पलामू के लोग बहुत सीधे होते हैं. लक्ष्मी भी कुर्ते-पयज़ामे पर मोज़े के साथ जूते पहना हुआ था. हमारे बड़े भाई के ओंठों पर मुस्कराहट की रेखाएं लक्ष्मी भांप गया. उसने तुरत कहा, “ लेकिन मैंने स्कूल रांची से ही किया है और मेरे पिताजी जेल के मुलाजिम हैं.”
लक्ष्मी को उस समय मेरे बड़े भाई ज्यादा इम्प्रेस्सिव लगे और वह उन्ही के साथ ज्यादा बाते करता. मेरी उम्र के साथ मेरा कद भी औसतन कम था. कुल 4 फीट 10 इंच. साथ में हाफ पैंट. सोने पै सुहागा ये कि सबसे आप-आप संबोधित कर बातें करना.
एक साल देखते-देखते बीत गए. कॉलेज का नया कैम्पस बन गया था. अगला सत्र वहीँ आरम्भ हुआ. इस बार लक्ष्मी से भेंट 15-20 दिनों बाद हुई. हमलोग ऑडिटोरियम हॉल के बरामदे पर खड़े थे. मैंने फुलपैंट पहनना शुरू कर दिया था. लक्ष्मी भी  फुलपैंट-शर्ट पहने था. हमलोग बात ही कर रहे थे कि इसी बीच दूर से एक लड़का आता दिखा. सिल्क का कुरता जिसकी बांहें रस्सी की तरह मोड़कर ऊपर तक चढ़ाई हुई थीं. सफ़ेद पायजामा जो काले जूते से 2 इंच ऊपर था. जूते और पायजामे के बीच के 2 इंच के गैप में लाल मोजा शोभा बढ़ा रहा था. सर पर खूब सारा तेल थोपे हुए.
लक्ष्मी ने उस लड़के को देखते ही कहा कि ये ज़रूर पलामुआ होगा. जैसे ही वह लड़का पास आया , लक्ष्मी ने उससे पूछा,” क्या बबुआ, कहाँ के रहने वाले हो ?” उस लड़के ने झुंझलाहट से भर कर जवाब दिया,” हाँ ! हम पलमुआ है ! क्या कर लोगे ?” हमलोगों का हँसते हुए बुरा हाल हो गया.
लौटते वक्त मैं लक्ष्मी के बारे में सोच रहा था. जिसमे खुदपर हँसने की हैसियत हो वह दूसरों को कितना हंसाता होगा.
धीमे-धीमे लक्ष्मी से मेरी नजदीकी बढती गयी इतनी की मेरे बड़े भाई को कहना पड़ा कि लक्ष्मी दोनों में से किसी एक को अपना दोस्त चुन ले. उसके बाद और अबतक हमारी दोस्ती किन-किन पड़ाव से गुजरी उसको समेटने के लिए पन्ने कम पड़ जायेंगे. लक्ष्मी से तो भूलकर नहीं पूछना . उसका जवाब होगा ...तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी हैरान हूँ मै !
50 साल हो गए. गोकि दोस्ती स्वार्थ से परे होती है पर क्या मैं उसपर खरा उतरता हूँ . मुझे जब भी मूड अच्छा करना होता है लक्ष्मी से मिल लेता हूँ या उससे फोन पर और अब तो स्काइप पर विडियो चैट कर लेता हूँ. 
सोचता एक है कांटैक्ट दूसरा करता है.

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