घर में उसे कोई भी अच्छी चीज़ खाने को मिलती तो हमलोगों के पास शेयर करने दौड़ा
चला आता. किसी को अपनी बाल दे देता किसी को अपनी नयी कलम.
उसका जन्म बसंत पंचमी के दिन हुआ था. सबसे शानदार उसका जन्मदिन मनता . हमलोग सभी उस दिन शाम को उसकी माँ का बनाया
हुआ स्वादिष्ट पकवान और बाजार से लायी गयी चुनिन्दा मिठाइयां खाते.
फुटबाल के खेल में उसको गोलकीपर बनना प्रिय था उसपर डाईव मारकर बाल पकड़ना .
चोट लगने के डर से वह दूर से आती हुई गेंद को देखकर पहले से लेट जाता. हमलोगों का हँसते-हँसते
बुरा हाल हो जाता. इसी तरह वह क्रिकेट की तेज आती गेंद को लपकने के बजाय उसके पीछे-पीछे भागता तबतक जबतक की गेंद बाउंड्री के बाहर न चली जाए. अगर उस दिन हमलोगों के भाईजी शंकर कप्तानी कर रहे होते तो हल्ले-गुल्ले का माहौल रुके नहीं रुकता.
एक बार हमलोग जब पास के पार्क में जो कोंग्रेस मैदान के नाम से जाना जाता था ,
आस-पास खेल रहे थे तो वह छिपने के लिए एक सकरे गड्ढे में कूद गया जहाँ पहले से एक
भयानक काला कुत्ता बैठा था. उस कुत्ते ने बसंत की जांघ पर अच्छे से दांत गड़ाये .
मुझे याद है जब हमलोग उसको टांगकर उसके घर ला रहे थे तो जख्म से काला खून बह रहा
था. सुबह जब वह कार से इंजेक्शन लेने जाता तो हमलोग अपने-अपने घर से झांका करते.
उसे पेट में कुल चौदह मोटे इंजेक्शन लगे थे.
1967 में जब हमलोग रांची के एच०ई०सी कालोनी में रहते थे तब बसंत भी एक महीने
के लिए उसी कालोनी में अपनी दीदी के पास गर्मी की छुट्टी में आया था. तब हम दोनों
गोपी सिंह भदोरिया के ६ किलोमीटर दूर धुर्वा में स्थित देल्ही कन्टीन में मशहूर
जलेबियां खाने जाते.
1968 में बसंत अमेरिका चला गया. उससे मेरी अंतिम मुलाकात 1970 के आस-पास हुई
जब वह अपनी छोटी बहन की शादी में पटना आया था. 5-10 का कद, वजन 70 किलो और सर पर
हबशियों जैसे बाल; खासकर मैं तो उसकी पर्सनालिटी से बहुत प्रभावित था. हमलोगों की औसतन उम्र तब 23 वर्ष, ऊंचाई लगभग 5-6 और वजन 50 किलो हुआ करती थी. हमलोग यानी अनिल, गोपाल और मैं.
2001 में अनिल ने मुझे बताया कि बसंत इंडिया में दवा मार्केटिंग का काम उसके साथ
मिलकर करना चाहता था.
2011 में अचानक मैंने बसंत को फेसबुक में खोज निकाला. उसने अपने परिवार के
बारे में लिखा और मुझसे मेरे बारे में पूछा. मैंने अपनी सारी उपलब्धियां गिना दीं
और उससे अनिल का पता-ठिकाना पूछा. उसके बाद उसने पूरी तरह चुप्पी साध ली. शर्मीला तो वह बचपन से था. कभी-कभी
वह फेसबुक में मेरे डाले गए विचार और फोटो पर “ लाइक” की मुहर लगा देता है. मैं भी उसको
उसके जन्मदिन पर बधाई देना नहीं भूलता हूँ.
शेक्सपीयर ने ठीक ही कहा है, “ What is past is prologue.”
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